ग़रीब की उड़ान
एक गावों में एक गरीब परिवार रहता था। परिवार में पति (हरिआ) -पत्नी (हीरा बाई) व उनके एक बच्चा मोहन
था। वे बड़ी कष्ट से अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे। एक दिन अचानक मोहन के पिता हरिआ की लम्बी बीमारी से मौत हो जाती है।
अब परिवार का सारा बोझ हिरा बाई पे आ जाता है , वह लोगो के घरो में बर्तन धोना ,खाना बनाना ,झादू पोछा करनी लगी। जिससे उनका जीवन निर्वाह होने लगा।
मोहन जब उसकी माँ किसी के यहां काम करती थी ,तो यहां पड़ा अखबार ले कर पढ़ने लग जाता था। एक दिन ऐसे ही हिरा बाई अपने मालकिन के यहां रसोई का काम कर रही थी, तो मोहन यहां पड़ा अखबार पढ़ने लगा ,इतने में मकान मालकिन आई और बोली अरे मोहन तू दिन भर अखबार में क्या करता रहता है, अपनी माँ का हाथ काम में क्यों नहीं बटाता, तो मोहन ने उत्तर दिया की हमरे पास किताब खरीदने के पैसे नहीं है इस लिए अखबार पढ़ता हूँ , मुझे बड़ा हो कर कलेक्टर जो बनना है।
इस पर मोहन की बाते सुन कर मालकिन जोर से हसने लगी , और हिरा बाई से बोली ये दिखो तुम्हरा लड़का कलेक्टर बनेगा। यह सब हिरा बाई को बहुत बुरा लगा , पर कुछ बोले बगैर यहां से चली गई।
हिरा बाई ने घर से ही टिफिन सर्विस देना सुरु किया , वह सुबह से लेकर शाम तक अकेले ही २०-२५ किलो आटे की रोटियां बना लेती थी। इस काम में मोहन भी श्कूल जाने से पहले हाथ बता दिया करता था।
एक दिन माकन मालिक किसान लाल उनके घर आया और बोला , अरे हिरा बाई तुम सुबह ३ बजे ही उठ जाती हो और देर रात तक लाइट जलाती हो जिसे बिजली का बिल ज्यादा आरहा है। अपनी लाइट की ब्यौस्था को या कमरा खली कर दो।
अगले दिन से मोहन लालटेन जला के पढ़ने लगा और उसी रोशनी में उसकी माँ भी खाना बनाने लगी।
मोहन अब अपनी स्कूल की पढाई पूरा कर लेता है , तो उसके गुरु जी ने पढाई के प्रति उसका लगन देख कर उसे स्कूल की तरफ से दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए भेज देते है। मोहन बहुत मन लगा कर पढाई करता है।
एक दिन जब उसका परीक्षा का दिन था जब वह स्कूल जा रहा था तो रोड क्रॉस करते समय एक कार ने उसे टककर मार दिया , मोहन का बाये हाथ बुरी तरह से जख्मी हो गया , और सोचने लगा की अब क्या करे , अगर हॉस्पिटल जाता है तो उसका परीक्षा छूट जायेगा और पूरा साल खराब हो जायेगा। फिर उसने निस्चय किया की उसका दाया हाथ तो ठीक है उसने परीक्षा देने के बाद हॉस्पिटल गया।
हॉस्पिटल के बेड पे पड़े पड़े ही उसने कॉम्पिटिशन की तयारी की और इंटरव्यू दिया। एक दिन उसकी माँ अख़बार लेके आई और मोहन को देते हुए बोली की देखो परीक्षा का परिणाम क्या आया है। मोहन अखबार देखते हुए उछाल पड़ा खुशी से अपने माँ से बोला की वह कलेक्टर बन गया है।
इस कहानी से शिक्षा -
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की ,चाहे कितनी भी बिकट परिस्तिथि हो अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटाना चाहिए।
धन्यबाद !
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