जादुई बारिश व चमत्कारी छतरी | Hindi Moral Stories
एक समय की बात है , शिवपुर नामक गांव में एक दिन कुछ साधु जानो का आगमन होता है , और वे गांव के लोगो कहते है की आज से ठीक सात दिन बाद कृष्ण पक्ष ख़त्म होगा और उसके बाद शुक्ल पक्ष प्रारम्भ होगा। शुक्ल पक्ष के एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक बहुत भीषण बारिस होने की सम्भवना है, लेकिन इसमें खास बात ये है की ये कोई मामूली बारिस नहीं होगी बल्कि जादुई बारिस है , ये बारिस जिस किसी के ऊपर पड़ेगा उसके दो परिणाम होंगे अगर ब्यक्ति ईमानदार है तो उसे कुछ नहीं होगा साथ ही ओ पहले से ज्यादा स्वस्थ व सुखी हो जाएगा लेकिन ठीक इसके उल्टा अगर ब्यक्ति बेईमान होगा जिसने अपने जीवन में गलत कार्य किये होंगे तो व बीमार पड़ जाएगा उसे हैज़ा ,प्लेग ,डेंगू आदि जैसे बीमारियां हो जाएँगी और वह मर जायेगा।
ये बात सुन कर जो ईमानदार लोग थे खुस हो गये, लेकिन जो बेईमान थे वे चिंता में आगये। गांव में ही एक कल्लू सिंह नाम का ब्यक्ति था जिसकी किराने की दुकान थी जो अपना सामन निर्धारित मूल्य से ज्यादे बेचता था। गांव से शहर की दुरी ज्यादा होने के कारन से लोग उससे ज्यादे कीमत देकर भी सामन ले आते थे। लोगो के इस मज़बूरी का कल्लू खूब फायदा उठता था।
कल्लू को जब ये साधुओ की बात पता चली तो वह टेंसन में आगया और भागे-भागे साधु के पास गया ,बोला साधु महराज क्या इस बारीश से बचने का कोई उपाय नहीं है।
साधु ने उत्तर दिया- की नहीं इस बारिस से कोई कही भी नहीं बच सकता यहाँ तक की घर में भी नहीं बच सकता। कल्लू बोला महाराज फिरभी कुछ तो उपाय होगा , साधु ने कहा हाँ एक उपाय है इस बारिस से केवल तुम्हे चमत्कारी छतरी ही बचा सकती है। साधु की ये बात सुनकर कल्लू की जान में जान आयी बोला तो ओ छतरी जल्दी से मुझे दे दिजिए क्यों की मै भीगना नहीं चाहता क्यों की मैंने बहुत बेईमानी की है।
साधु ने कहा - छतरी तुम्हे ऊँची पहाड़ी पे तपस्या में लीन एक महात्मा ही दे सकते है , उसके लिए तुम्हे वहां जाना पड़ेगा।
कल्लू आनन्फा-नन में पहाड़ी के लिए निकल पड़ा , रस्ते में उसे दो और बेईमान लोग मिल गए वे भी उसके साथ हो लिए। कुछ दूर चलने के पश्चात उनमे से एक को बहुत जोर की प्यास लगी ,जो प्यास बर्दास्त न होने पर रास्ते में एक गद्दे से गन्दा पानी पि लेता है जिससे उसे डायरिया हो जाता है और उसे उलटी व दस्त शुरू हूँ जाता है ,हालत ज्यादा ख़राब होने के कारन वह आधे रस्ते से ही वपिस चला है ।
अब बचे दोनों कुछ दूर और चलते है की एक जंगल में पहुँच कर रात का अँधेरा हो जाता रात होने के कारन से वे जंगल बिश्राम करने का फैसला करते है। लेकिन रात मच्छरों के कारण उनमे से कोई सो नहीं पाता है। मच्छरों से परेशान होकर कल्लू पास ही पड़े जानवर का गोबर अपने पुरे शरीर पर पोत लेता है जिसे उसे थोड़ा आराम मिलता है। कल्लू ने दूर ब्यक्ति को भी ऐसा करने के लिए बोला लेकिन उसने मन कर दिया और उसे रात भर मच्छर काटते रहे।
अगले दिन मछरो के काटने के कारन से दूसरा ब्यक्ति को मलेरिया हो गई और वह भी आधे रस्ते से वपिस आगया। अब कल्लू जैसे तैसे पहाड़ पर पंहुचा जहा तपस्या में लीन साधु उसे मिल गए। वह साधु को चमत्कारी छतरी देने के लिए कहता है , जिसपर साधु ने कहा हे बालक तुम छतरी के लिए इतना दूर आने कोई ावस्यकता नहीं थी , छतरी तो तुम्हे वही मिल जाती।
कल्लू ने कहा - ओ कैसे बाबा।
बाबा ने उत्तर दिया - इस बारिस से बचने के लिए सच्चे मन से पुरे ईमानदारी से अपने काम को करने किसी को अनावस्यक न सताना अर्थात अच्छे कर्म करना रूपी छतरी ही तुम बचा सकती है।
कल्लू को साधु की सारी बात समझ आगयी और वह वापिस आकर अपने बेईमानी के रस्ते को छोड दिया और अच्छे काम करने लगा। और जादुई बारिस में खूब नहाया।
इस कहानी से शिक्षा - इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमेशा हमें सच्चे रस्ते पे ईमानदारी से चलना चाहिए।
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