ये दुनिया एक ही है , पर अलग-अलग लोगो को अलग दिखाई देती है, ये सिर्फ हमारे अनुभव और सोच पर निर्भर करता है की ये संसार कैसा है। जी हाँ बिलकुल ठीक सुना आपने यह पृथ्वी, ब्रह्माण्ड, और कुछ भी नहीं सब हमारी परिकल्पना मात्र है, बहार वही हमें दीखता है जो हम देखना चाहते है। अर्थात दुनिया कही बाहर नहीं बल्कि हमारे भीतर ही है।
आईये इसे इस कहानी के माध्यम से समझते हैं।
एक ब्यक्ति अपनी बैलगाड़ी लिए किसी गाव के रास्ते जा रहा था , की तभी उसे एक बूढ़ा व्यक्ति दिखा वह रुक गया।
उस बूढ़े आदमी ने उससे पूछा- तुम कहाँ जा रहे हो , उसने उत्तर दिया की वह अपना गाव छोड़ कर आया है तथा अपने बसने के लिए कोई नया स्थान ढूंढ रहा है।
बूढ़े ने पूछा -जो गाव तुम छोड़ कर आये हो वो कैसा था।
आदमी ने उत्तर दिया -वो गांव बहुत ही ख़राब था वहां के लोग बिकुल भी ठीक नहीं थे, उनके बारे में सोंचने मात्र से ही उसे गुस्सा आ रहा है। वह दुबारा उस गांव में नहीं जाना चाहता। वह एक ऐसा गांव ढूंढ रहा है जहाँ बिलकुल शांति हो व जहाँ के लोग अच्छे हो।
बूढ़े ने कहा - फिर तो ये गांव भी तुम्हारे रुकने के लिए उपुक्त स्थान नहीं है , यहां के लोग तो और भी ज्यादा खराब हैं।
वह आदमी अपनी बैलगाड़ी लेकर चला ही था की एक घुड़सवार आकर रुका, और उसने बूढ़े से सवाल किया की क्या वह इस गांव में बस सकता है।
बूढ़े ने फिर वही सवाल इस ब्यक्ति से भी पूछा की जहाँ से वह आया है उस गांव के लोग कैसे थे।
घुड़सवार ने उत्तर दिया -बाबा उस गांव की तो बात ही मत करो वहां की याद मात्र से ही आनंद आ जाता है, वहां के लोग इतने अच्छे थे की उन्हें छोड़ कर आना नहीं चाहता था , अगर दुबारा मौका मिला तो वह फिर उस गांव में जाना चाहेगा।
बूढ़े ने कहा -फिर तो ये गांव बिलकुल तुम्हारे लिए सही रहेगा।
कास वह पहला आदमी भी इस बात को सुन और समझ पाया होता।
Moral:- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की जैसी हमारी मनोदशा होती है ये दुनिया ठीक वैसा ही हमे प्रतीत होती है। यदि हम अच्छे है तो सब अच्छा है।
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