ये कहानी "जादुई हरी चाय पत्ती" असम राज्य के एक छोटे से गांव चायपुर की है, इस गांव के अंदर ज्यादा तर सभी लोगो के पास अपने "चाय के बागान" थे और वे उनसे साल में दो से तीन बहार "हरी चाय की पत्तियाँ" तोड़ा करते थे तथा उन्हें चाय बनाने वाली फैक्ट्री को बेच देते थे।
इसी गांव में नीलू और चम्पतराम नाम का एक दंपत्ति रहता था , दिसंबर का ठंड़ का मौसम था ऐसे में चम्पतराम को चाय पिने की बहुत आदत थी , वह प्रायः अपनी पत्नी नीलू से हर घंटे चाय की मांगा करता रहता था।
चम्पतराम नीलू से : अरे भाग्यवान एक कप गरम चाय बना दो बहुत सर्दी है।
नीलू : हर घंटे बस चाय मांगते रहते हो क्या तुम्हे पता भी है , घर में चाय बनाने के लिए कोई सामान नहीं है ?और नहीं खाना बनाने का कोई सामान है , बहार जाओ और बाजार से कुछ सामान ले कर आओ।
चम्पतराम: अरे क्या कह रही हो अब मै चाय कैसे पिऊंगा इस कड़ाके की ठंड में मेरा चाय ही तो एक मात्र सहारा है जो मेरे शरीर को गर्म रखती है। मई अभी बाजार जा कर चायपत्ती लयाता हूँ।
चम्पतराम बहुत आलसी था तभी तो जहाँ सबके चाय के बागानों में चायपत्ती की फसल लहलहा रही थी वही उसके खेत में चाय की एक भी पत्ती नहीं थी , वह दिन भर बस चाय पिता रहता था और सोता रहता था।
चम्पतराम बहार जाता है और मजदूरी के लिए काम ढूंढता है , उसे एक जगह पर बोरा ढोने का काम मिल जाता है , जिससे उसे जो भी पैसे मिलते है उससे वह चाय बनाने का सामान खरीदता है और घर ले आताहै।
चम्पतराम : पहुँच कर ये लो अब जल्दी से एक कप गरमा-गरम चाय बना कर मुझे दो और हाँ घर के पीछे वाले पौधे दो चार हरी चाय की पत्ती भी डाल देना उससे चाय और भी बढ़ जाता है।
नीलू अपना सर पकड़ लेती है : अरे यह क्या सिर्फ चाय बनाने का सामान ले कर चले आये तुम्हे पता भी है घर में खाने का कोई सामान नहीं है अब मै खाना कैसे बनाऊं ?
इतना सारा चाय बनाने का सामान ले कर चले आये अब क्या चाय की दूकान खोलोगे।?
नीलू की चाय की दुकान वाली बात सुन चम्पतराम की दिमाग की घंटी बज गई , वह बोला ये तो बहुत अच्छा आइडिया है ऐसे में मुझे चाय पीने के लिए भी मिल जायेगा और बिज़नेस भी हो जाएगा।
नीलू : हे भगवन ! न जाने कौन सी मनहूस घडी में इस आदमी से मेरी शादी हुई थी की अब ये दिन देखने पड़ रहें हैं।
अगले दिन चम्पतराम रसोई घर से गैस चूल्हा और चाय बनाने का बर्तन कर अपने घर के दरवाजे पर ही चाय का ठेला लगा लेता है।
चम्पतराम के घर के पीछे चायपत्ती का एक पौधा था जो लगभग सुख ही गया था , उसमे थोड़ी बहुत जो पत्तियां आती वो उनमे से एक दो पत्ती तोड़ कर चाय में डाल देता था जिससे चाय का स्वाद और बढ़ जाता।
चम्पतराम - चाय ले लो चाय गरमा-गरम चाय आवाज लगाने लगा।
ऐसे में इतनी ठण्ड की वजह से लोग गरमा गरम चाय देख खुद को रोक नहीं पाते और चम्पतराम के के ठेले पर खींचे चले आते।
चाय बेचते-बेचते सुबह से दोपहर हो गई ऐसे में उसकी पत्नी नीलू घर से बहार आती है। और चम्पतराम से कहती अरे अब क्या पुरे दिन चाय ही बनेगी या खाना भी बनेगा।
चम्पतराम - अरे खाना बनाने से तुम्हे कौन रोक रहा है ?
नीलू - खाना कैसे बनेगा गैस चूल्हा तो तुम ले कर बैठे हो।
चम्पतराम- अच्छा लो तुम भी अब चाय पीओ चूल्हा तो अब रात को ही मिलेगा।
नीलू - तुम्ही पीओ अपनी चाय गुस्से से बोल कर घर के अंदर चली जाती है।
चम्पतराम को चाय बेचते-बेचते अब रात हो जाती है वह अपनी दुकान बढ़ा देता है , थोड़ी बहुत चाय जो बच जाता है वह उसे लगभग सुख चुके चायपत्ती के पौधे में डाल देता है , और कहता है लो तुम्हे कभी पानी नहीं डाला लेकिन आज तुम्हे चाय डाल रहा हूँ।
अगली सुबह चम्पतराम फिर चाय का ठेला लगता है , और "हरी चाय की पत्तिया" जैसे ही तोड़ने जाता है तो देखता है की जो चाय का पेड़ लगभग सुख चूका था वो बिलकुल हरा-भरा हो चूका है जैसे मनो कभी सूखा ही नहीं था और उसमे चाय के बीज रूपी फल भी आ चुके है।
चम्पतराम जल्दी से अपनी पत्नी नीलू को बुलाता है और दिखता है , तभी हरी चायपत्ती के पेड़ से एक परी प्रकट होती है और कहती है , तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद मै एक सापित परी थी जो इस श्रॉफ के कारन इस चाय के पौधे में कैद थी कल पूर्णिमा की रात तुम्हारे चाय डालने के कारण मैं मुक्त हो पाई हूँ , इस लिए मै खुश हो कर इस साधारण से चाय के पौधे को एक "जादुई चाय के पौधे" में बदल दिया है।
इस पौधे के फल सोने के बीज से भरे हैं , तुम फल तोड़ कर सोने के बीज निकाल सकते हो लेकिन एक दिन में मात्र एक ही फल तोड़ सकते हो।
ये सुन का कर दोनों बहुत खुस होते हैं सोचते हैं की चलो अब हमारी गरीबी दूर हो जाएगी।
चम्पतराम जादुई चाय के पौधे से एक फल तोड़ता है और उसके बीज निकलता है तो देखता है चाय के बीज सचमुच सोने के बीज में बदल चुके है।
चम्पतराम सोने के बीजो को बाजार में बेचने जाता तो उसे उसकी उम्मीद से ज्यादा पैसे मिलते है। वह घर आकर पैसे अपनी पत्नी को देता है और फिर से चाय का ठेला लगा लेता है। इस पूरा दिन बीत जाता है और रात हो जाती है।
चम्पतराम को अब नीद नहीं आती है वह अपनी पत्नी नीलू से कहता है, मुझे चिंता हो रही है की कही कोई हमारे चायपत्ती के बीजो को चोरी कर के ले गया तो क्या होगा।
नीलू - अब तुम सो जाओ भला कोई कैसे चोरी कर सकता है इस जादुई चायपत्ती के पौधे के बारे में हमारे अलावां किसी को पता ही नहीं है।
अगली सुबह चम्पतराम जल्दी से चाय के पौधे के पास जाता है और देखता है कल से ज़्यदा ची के बीज लगे थे , वह अपनी पत्नी से कहता है की अगर हम सारे फल तोड़ कर बेच दे तो कितना ज़्यदा पैस मिलेंगे।
नीलू - लेकिन हम एक दिन में तो सिर्फ एक ही फल तोड़ सकते है न।
चम्पतराम - लेकिन कोई हमारे पीछे सब फल तोड़ कर ले गया तो , नहीं नहीं हम घर आई लछमी को ऐसे ही नहीं जाने दूंगा।
इस प्रकार चम्पतराम सभी फल तोड़ लेता है , एक फल को खोल कर देखता है तो उसमे साधारण बीज निकलता है , वह जल्दी-जल्दी सभी चाय के फल को खोलता है लेकिन सभी में साधारण बीज ही निकलते हैं।
चम्पतराम अपने आपको कोसता है हे भगवान ये मैंने क्या कर दिया नीलू भी उसे बहुत बुरा भला कहती है की तुमने सब बर्बाद कर दिया घर आई लष्मी को भगा दिया।
लेकिन एक बात अच्छी ये हुई की चम्पतराम अब मेहनत करना सीख गया था , वह अब रोज चाय का ठेला लगाने लगा और लोगो को चाय पिलाने लगा।
इस कहानी से शिक्षा : इस कहानी "जादुई हरी चाय पत्ती | jadui chai pati" से हमें यह शिक्षा मिलती है की लालच बुरी बाला है , हमें कुछ भी हो लालच में नहीं पड़ना चाहिए थोड़े में ही संतोष करना चाहिए।
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